राेजगार के लिए एक हजार किमी दूर आए, लॉकडाउन होने के बाद घर नहीं गए, अब भूखे मरने की नौबत


जयपुर. काेराेना संक्रमण में लाॅकडाउन का दर्द सबसे ज्यादा राेजमर्रा की जिदंगी जीने वाले झेल रहे है। काम ताे छिना जाे अलग अब ताे दाे जून की राेटी भी नसीब हाेना मुश्किल लग रहा है। लाॅकडाउन के दाैरान लाखाें प्रवासी मजदूर अपना काम धंधा छाेड़कर हजाराें किमी दूर अपने घराें काे लाैट गए लेकिन प्रदेश के हजाराें ईंट भट्टाें पर काम करने वाले लाखाें मजदूर जिन्हाेंने सरकार के भराेसे पर लाॅकडाउन का पालन ताकि काेराेना संक्रमण का कम्यूनिटी ट्रांसमिशन नहीं हाे इसके लिए जहां थे वहीं ठहर गए।


घर में जाे राशन बचा ताे उससे कुछ दिन ताे घर का पेट भर लिया लेकिन बाकी दिन से गुजरेंगे यह पता नहीं। सीमित दायरे के अंदर झुग्गियाें में रहने वाले इन मजूदराें की एक ही अास है कि राज्य सरकार हरियाणा और यूपी की तर्ज पर ईंट भट्टाें काे चालू करने की अनुमति दे दें । इस बारे में उद्योग मंत्री परसादी लाल मीणा का कहना है कि पंजाब सरकार के अादेश का रिव्यू करने के लिए अधिकारियाें काे बाेल दिया है। आखिर लाखाें मजदूराें की राेजी राेटी का सवाल है। हमारा प्रयास रहेगा की जल्द से जल्द ईंट भट्टाेें काे चालू कर दिया जाए।



मजदूरों की कहानी...किसी को कर्ज की चिंता तो किसी को बीमारी का डर
रेनवाल मांझी स्थित ईंट भट्टे पर काम करने वाली इटावा की लाली कहती है छह महीने पहले पति के इलाज के लिए 80 हजार कर्ज लिया था। कर्ज के बदले तीन महीने पहले यहां काम करने आए। लेकिन इस बीमारी से काम छिन गया। अब कर्ज की चुकाने की चिंता हाे रही है दूसरे यहां खाने पीने के लिए राेज पैसे लेने पड़ रहे है। बिहार के बेगूसराय निवासी लल्लन कहते हैं इस बीमारी के दाैरान कुछ साथी गांव लाैट गए। हम यहां रहे तो मर जाएंगे। पांच लड़कियां और दाे लड़के है। एक बच्ची हाॅस्टल में रहकर पढ़ रही है। उसकी पढ़ाई के िलए कर्जा लिया था। सुना है पंजाब-यूपी में भट्टे चालू हैं। अब पैदल वहां जाने की साेच रहा हूं।



यूपी की शीला देवी कहती हैं सालभर पहले पति गुजर गया। परिवार के लिए यहां आ गई। जो पैसे थे खर्च हाे गए कुछ सास ससुर काे भेज दिए। इस बारे में सीटू महासचिव वीएस राणा का कहना है भट्टाें पर 3 से 4 लाख लोग हैं। काम के दाैरान ये दूर-दूर रहते हैं लेकिन भट्टे बंद हाेने पर एक जगह की बैठते हैं, इससे बीमारी फैल सकती है।